By: Anjali Punia (Sister of Mr. Ashish Kumar, L&T MHPS Boilers)
चल वक़्त बहाते हैं
चल ना… कहीं वक़्त बहाते हैं !
तू छोटी सी टिकिया गप्पों की ले आ
मैं झरना ठहाकों का ले आई
चल खूब नहाते हैं
चल वक़्त बहाते हैं
चल… चल ना… कहीं वक़्त बहाते हैं !
तेरे अक्षर – मेरी बातें
तूने देखा – मेरी आँखें
दुनिया शयानी
हम घमचक्कर !!
चल फुर्ररर हो जाते हैं
चल वक़्त बहाते हैं
ए चल ना…. कहीं वक़्त बहाते हैं !
छुपम-छुपाई – तू आधा काणा
पकड़ा-पकड़ी – मैं क्यों लंगड़ी
“स्टेचू” कर के सबको
चल सारी चॉकलेट खा जाते हैं !
चल वक़्त बहाते हैं
चल ना… कहीं वक़्त बहाते हैं !
पर्ररररम -टर्ररररम अपनी मोटर
पर तू पगला , मैं हूँ जोकर
कल्लू कबाड़ी वाले से
चल अपनी धन्नो वापिस लाते हैं
चल ना आज रेस लगाते हैं
चल वक़्त बहाते हैं !
हा हा हा हा
ही ही हो हो
सी सी डी बी सी
के एफ़ सी भी बी सी
मैक डी एफ़ ओ
फीलिंग नॉस्टॅल्जिक के बच्चे
नुक्कड़ पर चाय पकोड़े खाते हैं
चल वक़्त बहाते हैं
चल ना… कहीं वक़्त बहाते हैं !
चवन्नी-अट्ठनी
मेरे हाथ में खुजली
नए जूते-चप्पल
तेरे पैर में खुजली
चल अब “कुछ और” कमाते हैं !
चल वक़्त बहाते हैं
चल ना…. कहीं वक़्त बहाते हैं !
Source: www.laapatakidiary.blogspot.in
It is outstanding writing. My best wishes to the writer.
Thanks for the update Kate.
behtareen 🙂